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Showing posts from March, 2020

छीत स्वामी

                🙏🎯  छीत स्वामी  🎯🙏 🙏🎯 किस अष्टछाप के कवि का सम्बन्ध "पूछरी (उछनी) का लौटा" नामक स्थान से है? अ- सुन्दरदास  ब- चतुर्भुज दास  स- छीतु चौबे  द- विट्ठलनाथ  उत्तर:- ???? 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 👉 छीत स्वामी का जन्म- 1515 ईं• में मथुरा में हुआ । 👉 ये मथुरा के सुसम्पन्न पण्डित (पण्डा) और बीरबल के तीर्थ पुरोहित थे यानि यह अकबर के दरबारी कवि  व बीरबल के पुरोहित थे। 👉 इन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण गोवर्धन के निकट "उछनी (पूछरी) का लौटा" नामक स्थान पर बिताया था (यानी गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेने के बाद) 👉 छीत स्वामी के गुरु का नाम- विट्ठलनाथ था। 👉छीत स्वामी अपने गुरु से अत्याधिक प्रेम थे। 👉 गुरु विट्ठलनाथ की मृत्यु का समाचार सुनते ही इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए । 👍👉 अमीर खुसरो ने भी अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु का समाचार सुनते ही, दुसरे दिन प्राण त्याग दिए थे ।   👉 छीत स्वामी अत्यंत उदण्डी प्रवृत्ति के थे इसलिए इन्हें मथुरा म...

हिन्दी साहित्य की प्रश्नोत्तरी-5 || हिन्दी साहित्य के प्रश्नोत्तर || हिन...

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हिन्दी साहित्य की प्रश्नोत्तरी-4 || हिन्दी साहित्य के प्रश्नोत्तर || हिन...

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संत रज्जब दास

              🙏🎯संत रज्जब दास🎯🙏 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 👉 जन्म:- 1567 ईं में जयपुर के निकट सांगानेर में हुआ । 👉 यह दादूदयाल के प्रधान शिष्यों में से एक थे। 👉 रज्जब दास का वास्तविक नाम:- "रज्जब अली खाँ" था । 👉 'अंगबंधु' रज्जब दास की प्रमुख रचना है जिसमें दादूदयाल के पद संकलित हैं । 👉 'सर्वांगी' (सब्बंगी)  व 'बैनी' भी इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं हैं । 👉 रज्जब ने 'सब्बंगी ' में स्वरचित पदों के अतिरिक्त अन्य निर्गुण संतों द्वारा रचित पदों को भी स्थान दिया । 👉 रज्जब के-- /  स्वयं के पद "रज्जबबानी" में संकलित है। 👉रज्जब ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए- "दृष्टांत शैली " का सहारा लिया । 👉 "सुन्दर दास की अपेक्षा रज्जब दास में कवित्व शक्ति अधिक थी।"- डाॅ• बच्चन सिंह के अनुसार  🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏                    🙏🎯 धन्यवाद !!🎯🙏

हिन्दी साहित्य की प्रश्नोत्तरी- 3 || हिन्दी प्रश्नोत्तर || हिन्दी के सवा...

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हिन्दी साहित्य की प्रश्नोत्तरी || हिन्दी के प्रश्नोत्तर || हिन्दी के सवा...

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भक्तिकालीन गद्य साहित्य

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 👍👉भ्रमरगीत परम्परा का प्रारंभ सूरदास से मााना जाता है । 👍👉 भ्रमरगीत परम्परा का उपजीव्य ग्रंथ भागवत् पुराण है जिसके दशम स्कंद के 46 - 47 वें अध्याय से यह   प्रसंग लिया गया है। 1- सूरदास      भ्रमरगीत        भावुक गोपियां  2- नंददास       भँवरगीत      वाक्पटु/तर्कशील/ चतुर                                          गोपियां  3- सत्यनारायण कविरत्न                           भ्रमरदूत      माता यशोदा को भारत                                          के रूप में चित्रित किया                       ...

विद्यापति

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏        🙏🎯विद्यापति 🎯🙏 1- जन्म:- संवत् 1425 / 1380 ईं में, विपसी गाँव, दरभंगा (बिहार) में हुआ ।{विवादास्पद है} 2- बचपन का नाम :- बसंतराव। 3- पिता:- गणपति ठाकुर [ संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे।] 4- विद्यापति तिरहुत के राजा शिवसिंह के आश्रय में रहते थे। (आश्रयदाता- तिरहुत नरेश- कीर्तिसिंह,  शिवसिंह व लखिमादे') 5- विद्यापति मूलतः "शैव" थे। 6- विद्यापति ने शृंगार रस के अलावा 'शिव-पार्वती' से सम्बंधित कुछ हास्य-व्यंग्य पूर्ण पद लिखें है जिन्हें "नचारी " कहा जाता है । 7- विद्यापति कालक्रमानुसार भक्तिकाल ( सं• 1375- 1700 ईं) में आते हैं लेकिन प्रवृत्तियों के आधार इनकी गणना वीरगाथा काल ( सं• 1050- 1370 ईं ) में होती है । इसलिए विद्यापति को वीरगाथा व भक्तिकाल के मध्य की कड़ी  ( का कवि) भी कहा जाता है। 8- 'राजा शिवसिंह' ने विद्यापति को " अभिनव जयदेव " की उपाधि दी। 👍👉 विद्यापति के अन्य नाम:-      अ- मैथिल कोकिल       ब- अभिनव कवि       स- खेलन क...

मीरां बाई

🙏🎯 मीरां बाई 🎯🙏 1- मीरां शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के 'मीर' शब्द से मानी जाती है जिसका शाब्दिक अर्थ है- "मालिक"। 2- जन्म:- 1498 ईं में कुड़की ग्राम (पाली) में ।     ** शुक्ल जी ने संवत् 1573 चौकड़ी गाँव में माना है। 3- मीरां रावदूदा की पोत्री व रत्नसिंह की पुत्री थी। 4- बचपन का नाम है- "पेमल" 5- मीरां ने अपना आध्यात्मिक गुरु- 'रैदास जी" को माना है । 6- मीरां की भक्ति 'माधुर्य/ दाम्पत्य/ कांत/ कंत/ कांता भाव की थी। 7- मीरां का विवाह मेवाड़ के शासक राणा सांगा के पुत्र कुमार भोजराज (12 वर्ष की आयु में)के साथ हुआ लेकिन कुछ समय बाद   (19 वर्ष की आयु में) भोजराज की मृत्यु (7 वर्षों बाद) हो जातीं हैं । 8- मीरां के देवर विक्रमादित्य (विक्रमदेव) ने मीरां को यातनाएं देना आरम्भ कर दिया । 9- मीरां ने तुलसीदास जी से सलाह मांगी तो तुलसीदास जी ने निम्नांकित पंक्तियाँ लिखकर भेजी :-  " जाके प्रिय ने राम वैदही । तजही ताही कौटी बैरी, जदपी परम सनेही ।।"( विनय-पत्रिका से)  ** मीरां बाई ने कुछ समय वृंदावन में भी बिताया था। 10- मीरां ने अपना अन्तिम समय द...

चैतन्य महाप्रभु

🙏🎯 चैतन्य महाप्रभु 🎯🙏 👉जन्म- 1468 ईं में,  नवद्वीप (नादिया), बंगाल में । 👉 बचपन का नाम :- विश्वम्भर  👉 अन्य नाम है:-       1- गौरांग या गौड़चंद ( अत्याधिक सुन्दर होंने के कारण)      2- निमाई (प्रेम का नाम/ प्रेम से कहते है)      3- कृष्ण  👉 गुरु का नाम:- चण्डीदास या केशव भारती । 👉 यह विद्यापति के पदों को- भाव-विभोर होकर गााते थेे तथा गाते-गाते मुर्छित हो जाया करते थे । 👉 चैतन्य महाप्रभु 22 वर्ष की आयु में मध्वाचार्य के द्वारा प्रतिपादित ब्रह्म सम्प्रदाय में दीक्षित हुए लेकिन बाद में इस संप्रदाय को त्यागकर गौड़िय सम्प्रदाय (    अचिंत्य भेदाभेद सम्प्रदाय) की स्थापना की । 👉 गौड़िय सम्प्रदाय में  श्री कृष्ण ( उपास्य रूप)    को ब्रजेन्द्र कुमार कहा जाता है। 👉 इस सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण को संयोगी अवतार माना जाता है । 👉 चैतन्य महाप्रभु का  वृंदावन आगमन- 1515 ईं में हुु आ। 👉 रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी व सनातन स्वामी-- " चैतन्य महाप्रभु " के   शिष्य  माने जाते हैं । 👉 करौ...

हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड || भक्तिकाल-13 || निर्गुण काव्यधारा क...

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हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड || भक्तिकाल- 12 || कबीरदास- ब || निर्ग...

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हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड यानि भक्ति काल || कबीरदास- अ || निर्ग...

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हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड || भक्तिकाल-10 || संत नामदेव || निर्गु...

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हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड || भक्तिकाल- 9 || निर्गुण व सगुण भक्ति...

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हिन्दी साहित्य का द्वितीय कालखण्ड || भक्तिकाल-8 || चैतन्य महाप्रभु व इनक...

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