विद्यापति
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🙏🎯विद्यापति 🎯🙏
1- जन्म:- संवत् 1425 / 1380 ईं में, विपसी गाँव, दरभंगा (बिहार) में हुआ ।{विवादास्पद है}
2- बचपन का नाम :- बसंतराव।
3- पिता:- गणपति ठाकुर [ संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे।]
4- विद्यापति तिरहुत के राजा शिवसिंह के आश्रय में रहते थे।
(आश्रयदाता- तिरहुत नरेश- कीर्तिसिंह, शिवसिंह व लखिमादे')
5- विद्यापति मूलतः "शैव" थे।
6- विद्यापति ने शृंगार रस के अलावा 'शिव-पार्वती' से सम्बंधित कुछ हास्य-व्यंग्य पूर्ण पद लिखें है जिन्हें "नचारी " कहा जाता है ।
7- विद्यापति कालक्रमानुसार भक्तिकाल ( सं• 1375- 1700 ईं) में आते हैं लेकिन प्रवृत्तियों के आधार इनकी गणना वीरगाथा काल ( सं• 1050- 1370 ईं ) में होती है । इसलिए विद्यापति को वीरगाथा व भक्तिकाल के मध्य की कड़ी ( का कवि) भी कहा जाता है।
8- 'राजा शिवसिंह' ने विद्यापति को " अभिनव जयदेव " की उपाधि दी।
👍👉 विद्यापति के अन्य नाम:-
अ- मैथिल कोकिल
ब- अभिनव कवि
स- खेलन कवि
द- कवि शेखर/नवकवि शेखर
क- सरस कवि
ख- कवि रंजन
ग- कवि कण्ठहार
घ- हिन्दी का जयदेव
9- विद्यापति की प्रसिद्धी का आधार- "पदावली" है जो मैथिली भाषा में रची गई । यह एक शृंगारिक रचना है जिसमें 'राधा-कृष्ण' का शृंगारिक चित्रण हुआ है।
10- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने विद्यापति के काव्य की प्रशंसा करते हुए कहा," गीत गोविन्द के रचनाकार जयदेव की मधुर पदावली पढ़कर जैसा अनुभव होता है, वैसा ही विद्यापति की पदावली पढ़कर होता है।"
11- ग्रियर्सन विद्यापति को "भक्तकवि" मानते है।
12- हिन्दी साहित्य जगत् में 'कृष्ण काव्य परम्परा का प्रारंभ विद्यापति से ही माना जाता है यानि गीतिकाव्य परम्परा व कृष्ण भक्ति काव्य के जनक- विद्यापति को ही माना जाता है।
13- विद्यापति ने 'कीर्तिलता व कीर्ति पताका' नामक दो 'प्रशस्ति काव्य' काव्य भी लिखें, जिनकी भाषा "अपभ्रंश या अवहट्ठ" है।
14- विद्यापति ने कीर्तिलता (में शिवसिंह आश्रयदाता ) व कीर्ति पताका ( में कीर्तिसिंह आश्रयदाता ) के शौर्य का गुणगान किया है ।
15- विद्यापति ने अपनी रचना कीर्तिलता को कहाणी (Story) कहा है । इसकी एक प्रति 'हरप्रसाद शास्त्री ' को नेपाल यात्रा के समय मिली ।
** कीर्तिलता- भृंग-भृंगी संवाद पर आधारित रचना है।
** कीर्तिलता- गद्य-पद्य मिश्रित रचना होने के कारण इसे " चम्पू काव्य "भी कहा जाता है।
16- विद्यापति के पदों की तुलना 'सोलोमन ' के गीतों से करने वाले समर्थक ( समीक्षक)- ग्रियर्सन थे।
17👍👉 ऐसा कहा जाता है कि विद्यापति के पदों को गाते-गाते "चैतन्य महाप्रभु " मुर्छित हो जाया करते थे।
18- विद्यापति भक्त थे ( ग्रियर्सन ने माना है) या शृंगारी यह विवाद के विषय है ( अधिकांश आलोचक शृंगारी कवि मानते है, जैसे- शुक्ल जी भी)।
19- विद्यापति को भक्तकवि घोषित करने वाले आलोचकों को जवाब देते हुए- आ• रामचंद्र शुक्ल जी ने लिखा :-
" आध्यात्मिक रंग के चश्में आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं, उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने गीतगोविंद के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है वैसे ही विद्यापति के इन पदों को। विद्यापति वस्तुतः शृंगारी कवि थे।"
20- डाॅ• रामकुमार वर्मा के अनुसार, " विद्यापति के बाह्य संसार में भगवत् भजन कहाँ, वयसंधि में ईश्वर से संधि कहाँ; सद्यस्नाता में ईश्वर से नाता कहाँ, अभिसार में भक्ति का सार कहाँ, उनकी कविता विलास की सामग्री है उपासना का साधन नहीं ।"
21 विद्यापति की रचनाएँ:-
अ- संस्कृत में- 'भू- परिक्रमा,
पुरुष परीक्षा,
शैव-सर्वस्वसार
ब- अन्य रचनाएं :-
'दुर्गाभक्ति तरंगिणी,
गंगा वाक्यावली' आदि ।
🙏🎯"नचारी " क्या है?
अ- शिव-पार्वती के वियोग के पद
ब- कृष्ण- राधा के शृंगारिक पद
स- शिव- पार्वती के हास्य-व्यंग्य पूर्ण पद
द- सीता - राम सम्बंधी पद
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